प्रयागराज के झूंसी क्षेत्र में स्थित 800 साल पुराना कल्पवृक्ष, जिसे स्थानीय लोग ‘बूढ़ा बाबा’ के नाम से जानते हैं, वर्षों से श्रद्धा और विज्ञान दोनों के लिए शोध का विषय बना हुआ है. दक्षिण अफ्रीका के सवाना क्षेत्र में पाए जाने वाले इस बाओबाब (वानस्पतिक नाम: एडनसोनिया डिजिटाटा) वृक्ष की मौजूदगी, गंगा की उर्वराशक्ति और जलवायु की महत्ता को दर्शाती है. यह न सिर्फ हिंदू और मुस्लिमों की आस्था का केंद्र है, बल्कि वनस्पति वैज्ञानिकों के लिए भी आश्चर्य का विषय बना हुआ है.
गंगा की उर्वरा शक्ति से जीवंत है कल्पवृक्ष
पुरानी झूंसी में शेख तकी की मजार के पास स्थित यह वृक्ष, वैज्ञानिकों के अनुसार, गंगाजल में मौजूद पोषक तत्वों की वजह से आज भी हरा-भरा है. भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (बीएसआई) की वैज्ञानिक डॉ. आरती गर्ग के मुताबिक, रोमानिया विश्वविद्यालय के प्रो. एड्रियन पैट्रट के साथ किए गए शोध में इस वृक्ष की दीर्घायुता का पता चला था. वर्ष 2020 में जर्नल प्लॉस वन में प्रकाशित शोधपत्र ‘रेडियोकॉर्बन डेटिंग ऑफ टू ओल्ड बाओबाबस फ्रॉम इंडिया’ ने इसकी प्राचीनता को सिद्ध किया. डॉ. एचपी पांडेय, जो ईश्वर डिग्री कॉलेज में वनस्पति विज्ञान के शिक्षक रहे हैं, बताते हैं कि यह वृक्ष दक्षिण अफ्रीका के सवाना क्षेत्र की जलवायु में पनपता है, लेकिन गंगा की उपजाऊ मिट्टी और विशेष जल तत्वों ने इसे प्रयागराज में जीवित रखा है. गर्मी के दौरान जब सूर्य की किरणें रेत पर पड़ती हैं, तब इस वृक्ष को सवाना जैसा वातावरण मिलता है, जो इसकी दीर्घायु का प्रमुख कारण है.
कैसे पहुंचा भारत में बाओबाब वृक्ष?
इस वृक्ष के भारत आगमन का सटीक इतिहास स्पष्ट नहीं है, लेकिन वैज्ञानिक मानते हैं कि इसे अरबी, डच और पुर्तगाली व्यापारियों द्वारा यहां लाया गया होगा. सदियों से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय इस पेड़ को श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं.
जीवन संघर्ष की मिसाल है कल्पवृक्ष
डॉ. एचपी पांडेय बताते हैं कि किसी भी पेड़ की आनुवंशिक संरचना में 15-20 प्रतिशत जीन सक्रिय रहते हैं, जबकि 80 प्रतिशत जीन सुषुप्त अवस्था में होते हैं. जब कोई पेड़ कठिन परिस्थितियों से गुजरता है, तो इन सुषुप्त जीनों की सक्रियता बढ़ती है, जिससे इसकी उम्र लंबी होती है. कल्पवृक्ष की दीर्घायु इसके इसी प्राकृतिक अनुकूलन का परिणाम है.
भारत के अन्य प्रसिद्ध कल्पवृक्ष
. बाराबंकी का पारिजात वृक्ष: 800 वर्ष पुराना, गोमती नदी के समीप स्थित है.
. देवदुर्ग रायचुर का कल्पवृक्ष: 500 वर्षों से अस्तित्व में.
. गोलकुंडा फोर्ट का एलिफैंट ट्री: 450 वर्ष पुराना.
गंगा के किनारे स्थित यह बूढ़ा बाबा कल्पवृक्ष, न केवल प्रयागराज की पहचान है बल्कि यह प्रकृति के संरक्षण और हमारी आस्था का भी जीवंत उदाहरण है.