
महाराष्ट्र के पुणे और आसपास के क्षेत्रों में एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल बीमारी, गिलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के मामलों में तेजी से वृद्धि दर्ज की गई है. आपको बता दें कि अब तक इस बीमारी के 100 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. इनमें से 17 मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट पर हैं, जबकि सोलापुर में एक मरीज की मौत हो चुकी है. स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने मुफ्त इलाज की घोषणा की है.
पुणे नगर निगम (PMC) के आंकड़ों के अनुसार, 81 मरीज पुणे नगर निगम क्षेत्र से, 14 पिंपरी चिंचवड़ से और बाकी अन्य जिलों से हैं. राज्य सरकार ने GBS से प्रभावित गरीब मरीजों के लिए मुफ्त इलाज और दवाओं की व्यवस्था की है. डिप्टी सीएम अजित पवार ने कहा, “हम GBS के मरीजों को मुफ्त इलाज और जरूरी दवाएं उपलब्ध कराएंगे. इसके लिए अस्पतालों में विशेष इंतजाम किए गए हैं.”
प्रारंभिक जांच के अनुसार, बीमारी के कुछ मामलों में नोरोवायरस और कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी नामक बैक्टीरिया की मौजूदगी पाई गई है. साथ ही खड़कवासला बांध के पास एक कुएं के पानी में ई.कोली बैक्टीरिया का उच्च स्तर पाया गया है. हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इस पानी का इस्तेमाल पीने या अन्य घरेलू उपयोग के लिए किया जा रहा था. पुणे में सिंहगढ़ रोड, खड़कवासला, धायरी और किरकटवाड़ी जैसे क्षेत्रों में मामले अधिक पाए गए हैं. पानी के संदूषण की आशंका के चलते स्वास्थ्य विभाग ने नागरिकों को पानी उबालकर पीने की सलाह दी है.

स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, GBS के मामले सभी आयु वर्गों में देखे गए हैं. आपको बता दें कि इनमें 9 साल से कम उम्र के 19 बच्चे और 10-19 आयु वर्ग के 15 मरीज शामिल हैं. वहीं, 30-49 आयु वर्ग में 25 मरीज हैं.
PMC आयुक्त डॉ. राजेंद्र भोसले ने बताया कि कमला नेहरू अस्पताल में GBS मरीजों के लिए 15 ICU बेड आरक्षित किए गए हैं. उन्होंने कहा, “हमने चार सहायक चिकित्सा अधिकारियों को तैनात किया है, जो मरीजों की देखभाल और उनकी जरूरतों पर ध्यान देंगे.” और राज्य सरकार की पहल के तहत निजी अस्पतालों में भी मरीजों का मुफ्त इलाज सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं.
गिलियन-बैरे सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से नसों पर हमला कर देती है. इसका असर शरीर के विभिन्न हिस्सों में कमजोरी, सुन्नता और कभी-कभी पक्षाघात (पारालिसिस) भी हो सकता है. शुरुआती लक्षणों में हाथ-पैर में कमजोरी और झुनझुनी शामिल है. यह स्थिति तेजी से फैलकर पक्षाघात का कारण बन सकती है. इस बीमारी का इलाज महंगा है, जिसमें हर इंजेक्शन की कीमत लगभग ₹20,000 है.
स्वास्थ्य विभाग ने 25,000 से अधिक घरों का सर्वे पूरा कर लिया है. विभाग ने नागरिकों से अपील की है कि वे साफ-सफाई का ध्यान रखें, पानी उबालकर पिएं और खाने को अच्छे से पकाकर ही खाएं. सरकार की ओर से यह भी कहा गया है कि इस बीमारी से घबराने की जरूरत नहीं है. समय पर इलाज मिलने से अधिकांश मरीज ठीक हो रहे हैं.