बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को अपने कैबिनेट मंत्रियों के विभागों का बंटवारा किया, जिसमें कई मंत्रियों के विभाग में फेरबदल किया गया है और भाजपा कोटे के सात नए मंत्रियों को विभाग आवंटित किए गए हैं। इस फेरबदल ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, क्योंकि इसमें कई पुराने और दिग्गज नेताओं से उनके विभाग छीन लिए गए हैं। सरकार ने इस फेरबदल की आधिकारिक अधिसूचना जारी कर दी है, जिससे अब नए विभागों का कार्यभार संभालने वाले मंत्रियों को अपनी जिम्मेदारी सौंपी गई है।
मुख्य बदलाव के रूप में डिप्टी सीएम विजय सिन्हा से पथ निर्माण विभाग छीनकर नीतीन नवीन को सौंपा गया है, जबकि विजय सिन्हा को अब कृषि और खान-भूतत्व विभाग सौंपा गया है। इस बदलाव के बाद बिहार में यह चर्चा शुरू हो गई है कि भाजपा ने अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराते हुए कुछ मंत्रियों से उनके विभाग छीन लिए हैं। इसी तरह, कृषि विभाग से मंगल पांडेय को भी हटा दिया गया है और यह विभाग डिप्टी सीएम विजय सिन्हा को सौंपा गया है।
इसके अलावा, संतोष सुमन से भी उनके दो विभाग छीन लिए गए हैं। पहले संतोष सुमन के पास दो विभाग थे, लेकिन अब उनके पास केवल एक विभाग रह गया है। उनके साथ हुए इस बदलाव को लेकर राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है, खासकर हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के राष्ट्रीय अध्यक्ष संतोष सुमन के बारे में। कुछ लोग यह मान रहे हैं कि भाजपा ने इस विभागीय फेरबदल के जरिए सुमन को उनके “सामर्थ्य” का अहसास कराया है। सुमन और उनके पार्टी अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने भाजपा पर सीट शेयरिंग को लेकर दबाव बनाने की कोशिश की थी, और इस फेरबदल को लेकर कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शायद भाजपा ने इसे उनका खामियाजा बताया है।
कैबिनेट के अन्य फेरबदल में दिलीप जायसवाल से राजस्व विभाग लेकर संजय सरावगी को दे दिया गया है, जबकि प्रेम कुमार का विभाग छीनकर राजू सिंह और सुनील सिंह को सौंपा गया है। इसके अलावा, कई अन्य विभागों में भी फेरबदल किए गए हैं, जैसे कि संजय सरावगी को राजस्व एवं भूमि सुधार, जीवेश कुमार को नगर, विकास एवं आवास, और सुनील कुमार सिंह को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय मिला है।
इस फेरबदल के बाद राजनीतिक समीकरण बदलने की संभावना जताई जा रही है। कई राजनीतिक विश्लेषक इस बदलाव को आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा पार्टी के अंदर संतुलन बनाए रखने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं। खासकर भाजपा और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) के नेताओं के बीच कुछ मुद्दों को लेकर तनातनी रही है, जिसे इस फेरबदल के जरिए शांत करने का प्रयास किया गया है।
वहीं, इस फेरबदल से संतोष सुमन और उनके समर्थकों को एक बड़ा झटका लगा है। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा द्वारा किए गए इस कदम से सुमन को यह समझ में आ गया है कि जब वह भाजपा के साथ रहे तो उन्हें अपनी स्थिति को लेकर सतर्क रहना होगा।