बिहार विधानसभा का शीतकालीन सत्र, जो 29 नवंबर तक चलने वाला है। जो इस बार महत्वपूर्ण होगा। लेकिन विपक्ष के हंगामे और अव्यवस्था के कारण, कई बार जनहित से जुड़े मुद्दों पर गंभीर चर्चा नहीं हो पाती। वहीं विपक्ष के हंगामापूर्ण रवैये के कारण विधानसभा का सही तरीके संचालन नहीं हो पा रहा है। शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन विपक्षी सदस्यों ने अलग-अलग मसलों पर हो-हल्ला किया। वेल में नारेबाजी और प्रदर्शन के बीच ही विधायी कार्यों का निबटारा हुआ, लेकिन दोनों दिन शून्यकाल व ध्यानाकर्षण नहीं हो सका। हालांकि, दोनों दिन विपक्ष ने प्रश्नोत्तरकाल चलने दिया पर अहम विधेयकों पर चर्चा नहीं हो सकी। दरअसल शीतकालीन सत्र में रोज सदन में हंगामा और बवाल की तस्वीर उभर कर सामने आ रही है। शीतकालीन सत्र के पहले दिन सोमवार को अध्यासीन सदस्य का मनोनयन और शोक प्रस्ताव के बाद सदन की कार्यवाही स्थगित हो गई थी। दूसरे दिन यानी मंगलवार को सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्षी सदस्य आरक्षण के मसले पर हो-हल्ला करने लगे। इस पर सभाध्यक्ष नंदकिशोर यादव ने विपक्ष से प्रश्नोत्तरकाल चलने देने को कहा। तब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि कार्यस्थगन उठाने के समय विपक्ष को अपनी बात रखने का मौका दिया जाए तो हम प्रश्नोत्तरकाल चलने देंगे।
प्रश्नोत्तरकाल के बाद जब सभाध्यक्ष ने कार्यस्थगन प्रस्ताव को अमान्य कर दिया तो विपक्षी सदस्य हो-हल्ला करने लगे। हो-हल्ला के बीच शून्यकाल शुरू हुआ। कुछ देर के बाद विपक्षी सदस्य वाकआउट कर गए। दूसरी पाली में जब सरकार ने विधेयक रखना चाहा तो विपक्षी सदस्य एक बार फिर आरक्षण के मसले पर हो-हल्ला करने लगे। बाद में विपक्षी सदस्य वाकआउट कर गए तो उनकी अनुपस्थिति में ही दो विधेयक पारित हुआ। बुधवार को भी विपक्षी सदस्यों का रवैया शुरू से ही हंगामेदार रहा। सदन की कार्यवाही शुरू होते ही विपक्षी सदस्य हंगामा करने लगे। प्रश्नोत्तरकाल के बाद जब सभाध्यक्ष ने कार्यस्थगन प्रस्ताव अमान्य कर दिया तो विपक्षी सदस्य फिर वेल में आ गए। हंगामा और नारेबाजी करने लगे। हो-हल्ला के बीच शून्यकाल शुरू हुआ। हंगामा के कारण सभाध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही 12.10 बजसे दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी। यह स्थिति न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बाधित करती है, बल्कि आम जनता के सवालों और समस्याओं को अनसुना करने का काम भी करती है। विपक्ष का हंगामा उनकी असहमति व्यक्त करने का एक तरीका हो सकता है, लेकिन इसे रचनात्मक चर्चा और समाधान के रास्ते में बाधा नहीं बनना चाहिए।