माणा गांव के पास हाल ही में हुए हिमस्खलन ने एक बार फिर उन सवालों को जन्म दिया है, जिनसे जुड़ी चिंताएं पहले भी उठ चुकी हैं। शुक्रवार सुबह माणा गांव से लगभग तीन किमी आगे माणा पास में एक भीषण हिमस्खलन हुआ, जिसमें वहां रह रहे 55 श्रमिकों की जान को खतरा हो गया। हालांकि, सेना और आईटीबीपी द्वारा किए गए त्वरित रेस्क्यू अभियान के कारण अधिकांश श्रमिकों को सुरक्षित निकाल लिया गया, लेकिन अब इस घटना के बाद यह सवाल उठ रहा है कि इन श्रमिकों के लिए असुरक्षित और संवेदनशील स्थान पर आवास क्यों बनाए गए? शुक्रवार सुबह करीब छह बजे माणा पास में हिमस्खलन हुआ और इसके परिणामस्वरूप वहां मौजूद मजदूरों का बड़ा हिस्सा इसकी चपेट में आ गया। यह स्थान पहले से ही हिमस्खलन के लिहाज से संवेदनशील माना जाता है, क्योंकि यहां पूर्व में भी कई बार हिमस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं। यह स्थिति खासतौर पर चिंताजनक है क्योंकि श्रमिकों के ठहरने का स्थान पहाड़ी के ठीक नीचे था, जो कि प्राकृतिक आपदाओं के लिए जोखिमपूर्ण हो सकता था।

अब सवाल उठ रहे हैं कि बीआरओ (बॉर्डर रोड आर्गेनाइजेशन) ने ऐसी जगह पर श्रमिकों के आवास के लिए जगह क्यों चुनी, जो हिमस्खलन प्रभावित क्षेत्र है। बीआरओ की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा जा रहा है कि ठेकेदार ने उस स्थान का चयन किया, जो आपदा के लिहाज से पहले से संवेदनशील था। हिमस्खलन के समय वह क्षेत्र पहाड़ी की ढलान पर था, जिस कारण पूरी बस्ती इसकी चपेट में आ गई। हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए जो उपाय किए जाने चाहिए थे, उनमें स्पष्ट रूप से कमी नजर आती है। यह सवाल अब सामने आ रहा है कि श्रमिकों के लिए असुरक्षित स्थानों पर आवास बनाने के बजाय, क्यों नहीं उनके लिए सुरक्षित और आपदा-रोधी जगहों का चयन किया गया। खासकर माणा जैसे हिमस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में इस तरह की कार्यशैली खतरनाक साबित हो सकती है। यह घटना बीआरओ और संबंधित संस्थाओं के लिए एक चेतावनी के रूप में सामने आई है।