चीन ने तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े जलविद्युत बांध के निर्माण की योजना को मंजूरी दे दी है। इस परियोजना के तहत हिमालय की गहरी घाटी में विशाल बांध बनाया जाएगा। यह नदी अरुणाचल प्रदेश होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है। चीन का यह कदम भारत और बांग्लादेश के लिए चिंता का कारण बन गया है। आपको बता दे की इस बांध से ब्रह्मपुत्र नदी के जल प्रवाह में बदलाव की आशंका है, जो भारत और बांग्लादेश दोनों की जल आपूर्ति और कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीन द्वारा जल प्रवाह को नियंत्रित करने से सूखे और बाढ़ की घटनाएं बढ़ सकती हैं। भारत और बांग्लादेश दोनों की अर्थव्यवस्था और लाखों लोगों की आजीविका ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्भर है। बांग्लादेश में जल आपूर्ति का 90% हिस्सा सीमा पार से आता है, जिसमें ब्रह्मपुत्र का बड़ा योगदान है। ऐसे में चीन की यह परियोजना जल सुरक्षा को लेकर बड़े सवाल खड़े कर रही है। चीन ने दावा किया है कि यह परियोजना निचले इलाकों पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं डालेगी और सुरक्षा संबंधी सभी मुद्दों का समाधान किया गया है। चीन का कहना है कि वह बाढ़ और सूखे जैसी समस्याओं को रोकने के लिए भारत और बांग्लादेश के साथ सहयोग करेगा। हालांकि, भारत ने अब तक इस पर आधिकारिक बयान नहीं दिया है। 2006 में बने विशेषज्ञ तंत्र (ELM) के तहत चीन हर साल भारत को ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों पर जल संबंधी जानकारी देता है। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इस नए बांध से दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है। बांग्लादेश और भारत के लिए यह आवश्यक हो गया है कि वे चीन से इस परियोजना पर स्पष्टता मांगें। साथ ही जल संसाधन प्रबंधन और आपदा नियंत्रण के उपायों पर जोर दें। इस मुद्दे पर भारत और बांग्लादेश को आपसी सहयोग बढ़ाने की जरूरत है ताकि क्षेत्रीय जल सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। साथ ही, आधुनिक तकनीकों का उपयोग कर जल संरक्षण और प्रबंधन को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाने होंगे। चीन का यह कदम न केवल पर्यावरणीय संतुलन पर असर डालेगा, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ उसके संबंधों को भी प्रभावित कर सकता है।