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बेटियों की उपेक्षा पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई योगेश्वर साव को कड़ी फटकार

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Supreme Court reprimanded Yogeshwar Sao for neglecting his daughters

सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के मामले में झारखंड के हजारीबाग निवासी योगेश्वर साव की याचिका पर सुनवाई करते हुए तीखी टिप्पणी की। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने अपीलकर्ता को अपनी बेटियों की उपेक्षा करने और पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करने के लिए जमकर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि “आप किस तरह के आदमी हैं, जो अपनी बेटियों की भी परवाह नहीं करते?” इसके बाद पीठ ने यह भी सवाल किया कि ऐसे निर्दयी व्यक्ति को अपनी कोर्ट में कैसे आने दिया जा सकता है? न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि यदि योगेश्वर साव अपनी कृषि भूमि अपनी बेटियों के नाम करने पर सहमत होते हैं, तो उन्हें राहत दी जा सकती है। योगेश्वर साव के खिलाफ यह मामला 2015 में शुरू हुआ था, जब हजारीबाग के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने उन्हें आईपीसी की धारा 498A के तहत दोषी पाया था। अदालत ने उन्हें अपनी पत्नी पूनम देवी को 50 हजार रुपये दहेज के लिए प्रताड़ित करने का दोषी पाया और ढाई साल की सजा सुनाई थी। पूनम देवी ने 2009 में अपने पति के खिलाफ दहेज उत्पीड़न, जबरन गर्भाशय निकालने और दूसरी शादी करने का आरोप लगाया था, जिसके बाद उन्होंने पारिवारिक न्यायालय में अपने और अपनी बेटियों के भरण-पोषण के लिए याचिका दायर की थी। पारिवारिक न्यायालय ने योगेश्वर को आदेश दिया था कि वह अपनी पत्नी को 2,000 रुपये प्रति माह और प्रत्येक बेटी को वयस्क होने तक 1,000 रुपये प्रति माह देंगे। योगेश्वर ने झारखंड हाई कोर्ट में अपनी सजा के खिलाफ अपील की थी, लेकिन सितंबर 2024 में हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद, योगेश्वर ने दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से जुड़े एक अन्य महत्वपूर्ण मामले की भी चर्चा की, जिसमें आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) के सदस्यों की नौकरी की सुरक्षा की मांग की गई थी। इस याचिका को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने नोटिस जारी किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को महत्वपूर्ण बताते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ताओं के वकील से कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिसे इस मामले में उठाया गया है। कोर्ट ने वकील से यह भी कहा कि अगर अगली सुनवाई पर कोई प्रतिनिधि पेश नहीं होता है, तो अदालत एक एमिकस क्यूरी (अदालत द्वारा नियुक्त तटस्थ सलाहकार) नियुक्त करेगी। याचिकाकर्ता ICC की पूर्व सदस्य जानकी चौधरी और पूर्व पत्रकार ओल्गा टेलिस हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अगले सप्ताह सुनवाई की तारीख तय की है।
यह मामला महिला और बाल विकास मंत्रालय से जुड़े कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर आधारित है, जिसमें निजी कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH एक्ट) के तहत गठित आंतरिक शिकायत समितियों के सदस्यों के लिए कार्यकाल की सुरक्षा और बदले की कार्रवाई से संरक्षण की मांग की गई है। यह याचिका कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और उनके प्रति न्याय सुनिश्चित करने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण

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