Home राष्ट्रीय भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले का संघर्ष और योगदान

भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले का संघर्ष और योगदान

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Savitri Bai Phule: India's first woman teacher and social reformer

आज, 3 जनवरी को, भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले की 194वीं जयंती मनाई जा रही है। महाराष्ट्र के सतारा में जन्मी सावित्रीबाई ने महिलाओं और बच्चों की शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया। उन्होंने विधवाओं के उत्थान के लिए भी अथक प्रयास किए। सावित्रीबाई फुले को आज भी एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाई। महिलाओं के अधिकारों की आवाज एक समय था जब महिलाओं को घर की चारदीवारी में कैद रखा जाता था। उस समय सावित्रीबाई फुले ने समाज की रूढ़िवादी मान्यताओं को चुनौती दी और नारी सशक्तिकरण का बिगुल बजाया। महज नौ वर्ष की उम्र में विवाह के बाद, उन्होंने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर समाज सुधार के लिए कई बड़े काम किए। उन्होंने महिलाओं के हक के लिए लड़ाई लड़ी और समाज में व्याप्त जाति-पाति, छुआछूत और विधवाओं के प्रति अन्याय का विरोध किया। शिक्षा का प्रचार-प्रसार सावित्रीबाई ने गरीबों और महिलाओं को पढ़ाने के लिए स्कूल खोले। उन्होंने यह संदेश दिया कि शिक्षा सबका अधिकार है और किसी को भी शिक्षा से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। सावित्रीबाई फुले ने समाज को यह सिखाने की कोशिश की कि सभी लोग बराबर हैं काव्य और समाज सुधार सावित्रीबाई फुले केवल समाज सुधारक ही नहीं थीं, बल्कि वे एक उत्कृष्ट कवयित्री भी थीं। उनकी कविताओं में समाज की बुराइयों और असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाई गई थी। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को जागरूक किया और समानता का संदेश फैलाया। साहस और संघर्ष सावित्रीबाई के समाज सुधार के कार्यों के कारण उन्हें अनेक विरोधों का सामना करना पड़ा।

जब वे घर से बाहर जाती थीं, तो लोग उन पर कीचड़ फेंकते थे। लेकिन वे कभी डरी नहीं। सावित्रीबाई हमेशा एक अतिरिक्त साड़ी और पानी साथ लेकर चलती थीं ताकि जरूरत पड़ने पर बदल सकें। उन्होंने अपने घर में एक ऐसा कुआं बनवाया जिसमें सभी जातियों के लोग पानी पी सकते थे। यह उनकी समानता की सोच का प्रतीक था। महामारी और सेवा 1875 से 1877 के बीच महाराष्ट्र में आए अकाल के दौरान सावित्रीबाई ने सत्यशोधक समाज के माध्यम से जरूरतमंदों की मदद की। 1896 में महाराष्ट्र में फिर अकाल आया, तब भी उन्होंने बीमार और भूखे लोगों की सेवा की। अपने सेवाभाव के चलते, वे प्लेग से संक्रमित हो गईं और 10 मार्च, 1897 को उनका निधन हो गया। विधवाओं और महिलाओं के अधिकार सावित्रीबाई फुले ने विधवाओं के प्रति होने वाले अन्याय के खिलाफ भी आवाज उठाई। उन्होंने नाईयों से अनुरोध किया कि वे विधवाओं के बाल न काटें और इस अमानवीय प्रथा को बंद करने का आग्रह किया। इसके अलावा, उन्होंने स्कूल जाने वाले बच्चों को आर्थिक सहायता दी ताकि वे पढ़ाई कर सकें। सत्यशोधक समाज सावित्रीबाई और ज्योतिराव फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की। यह संगठन समानता और सामाजिक न्याय के लिए काम करता था। इस समूह ने बिना पंडित या पुजारी के शादियां करवाने और दहेज प्रथा का विरोध करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए। सावित्रीबाई फुले का जीवन और कार्य आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। उन्होंने शिक्षा, समानता और महिला अधिकारों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। सावित्रीबाई फुले को उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा। उनकी जयंती पर हम सभी को उनके आदर्शों को अपनाने और समाज सुधार के लिए प्रयास करने का संकल्प लेना चाहिए।

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