केंद्र अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को उस समय झटका लगा, जब एक विशेष कोर्ट ने दो दशक बाद गैंगस्टर छोटा राजन को एक बिल्डर को धमकाने के मामले में बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह आरोप साबित करने में असफल रहा, क्योंकि गवाहों की गवाही में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं मिला। हालांकि, छोटा राजन अब भी तिहाड़ जेल में ही रहेगा। वह अभी मुंबई के क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है। विशेष न्यायाधीश ए.एम. पाटिल ने गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष का सबसे विश्वसनीय गवाह भी इस बात को लेकर निश्चित नहीं है कि फोन पर बिल्डर को धमकी देने वाला व्यक्ति वास्तव में छोटा राजन ही था। मामले की जांच करने वाली सीबीआई ने कहा था कि बिल्डर नंद कुमार हरचंदानी को छोटा राजन के नाम पर कई धमकी भरे फोन आए थे, जिनमें कहा गया था कि वह कुछ कुछ व्यापारियों के बकाया पैसे चुका दे। अभियोजन पक्ष का दावा था कि पैसे के लेन-देन को लेकर छोटा राजन नाराज था और उसने बिल्डर को सबक सिखाने की योजना बनाई थी। आरोप था कि राजन ने अपने सहयोगियों के जरिए हरंचदानी को कहा था कि वह निर्माण कार्य रोक दे। सितंबर 2004 में सात अज्ञात लोग हरचंदानी के दफ्तर में घुसे और उनके अकाउंटेंट पर गोलीबारी की, लेकिन वह बाल-बाल बच गए। कोर्ट ने कहा, अभियोजन पक्ष की ओर से पेश किए गए दो चश्मदीदों की गवाही में छोटा राजन के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला। मकोका (महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम) कोर्ट के जज ने कहा, सबसे अहम गवाह इरशाद शेख था, जिसे छोटा राजन की तरफ से धमकी भरा फोन आया था। लेकिन, जिरह के दौरान उसने स्वीकार किया कि वह पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि फोन करने वाला छोटा राजन ही था या कोई और। यही गवाही इस केस को जड़ से हिला देती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा है।