महाराष्ट्र में हालिया महायुति सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में शामिल नहीं किए जाने से निराश राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल ने खुलासा किया है कि उन्हें राज्यसभा की सदस्यता की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह उनके विधानसभा क्षेत्र, येवला के मतदाताओं के साथ विश्वासघात होता, जहां से उन्होंने हाल ही में चुनाव जीता था।
- राज्यसभा की पेशकश:
- भुजबल ने बताया कि उन्हें आठ दिन पहले राज्यसभा सीट का प्रस्ताव मिला था, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। उन्होंने कहा कि भविष्य में वह इस विकल्प पर विचार कर सकते हैं लेकिन तत्काल नहीं।
- मंत्रिमंडल से बाहर:
भुजबल ने कहा कि उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने पर अजित पवार से कोई बातचीत नहीं हुई है। उन्होंने दावा किया कि ओबीसी समुदाय के समर्थन में उनकी मुखरता के कारण उन्हें बाहर रखा गया। - मराठा आरक्षण विवाद:
भुजबल ने कहा कि मराठा समुदाय को ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की मांग का उन्होंने विरोध किया था और ओबीसी समुदाय के हक की पैरवी की थी। - मंत्री पद पर टिप्पणी:
पूर्व मंत्री ने कहा कि मंत्री पद आते-जाते रहते हैं, लेकिन उन्हें राजनीति से मिटाया नहीं जा सकता। - कैबिनेट विस्तार:
रविवार को महायुति सरकार में भाजपा, शिवसेना, और राकांपा के 39 विधायकों ने शपथ ली। इसमें 10 पूर्व मंत्रियों को हटाकर 16 नए चेहरों को शामिल किया गया।
“जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना,” भुजबल ने कहा, जब उनके भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछा गया।
मंत्रिमंडल विस्तार में छगन भुजबल, दिलीप वाल्से पाटिल (राकांपा), सुधीर मुनगंटीवार और विजयकुमार गावित (भाजपा) जैसे प्रमुख नेताओं को शामिल नहीं किया गया।
भुजबल जैसे वरिष्ठ नेताओं को मंत्रिमंडल से बाहर रखना राजनीतिक संदेश दे सकता है, खासकर ओबीसी और मराठा आरक्षण की जटिल पृष्ठभूमि में। उनकी नाराजगी महायुति सरकार के भीतर असंतोष को भी दर्शाती हैं
छगन भुजबल का राज्यसभा की पेशकश ठुकराना और मंत्रिमंडल से बाहर होने की नाराजगी दर्शाता है कि महाराष्ट्र की राजनीति में ओबीसी और मराठा आरक्षण जैसे मुद्दे अभी भी राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर रहे हैं।