
प्रयागराज : महाकुंभ 2025 के पावन अवसर पर देशभर से श्रद्धालु संगम नगरी पहुंच रहे हैं. संगम तट पर स्नान का विशेष महत्व माना जाता है, लेकिन संतों और अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि पूरे कुंभ क्षेत्र में स्नान से समान पुण्य प्राप्त होता है.
श्रीगोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि गंगा में स्नान करना स्वयं में सर्वमंगलकारी है. यदि संगम पर डुबकी लगाना संभव न हो, तो श्रद्धालु कुंभ क्षेत्र में किसी भी स्थान पर स्नान कर पुण्य प्राप्त कर सकते हैं. त्रिवेणी संगम की पवित्रता केवल जल में नहीं, बल्कि यहां की हवा और वातावरण में भी समाहित है. वहीं अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी ने कहा कि महाकुंभ का महत्व केवल एक स्थान विशेष तक सीमित नहीं है. कुंभ क्षेत्र में जहां भी गंगा की धारा उपलब्ध हो, वहां स्नान करने से संगम स्नान के बराबर ही पुण्य मिलता है. संत समाज ने श्रद्धालुओं से अपील की कि वे धैर्य और संयम बनाए रखें और निकटतम घाटों पर स्नान कर पुण्य लाभ अर्जित करें.

परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि महाकुंभ के दौरान श्रद्धालुओं को केवल संगम पर ही भीड़ लगाने की आवश्यकता नहीं है. हर घाट संगम के समान है, और महत्वपूर्ण यह है कि सभी श्रद्धालु सुरक्षित और संयमित होकर स्नान करें. महाकुंभ स्नान के शुभ मुहूर्त को लेकर संगम नगरी में श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता है. दूर-दराज से आ रहे लोग संगम तट पर स्नान का सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं, जिससे वहां अत्यधिक भीड़ हो रही है. ऐसे में संत समाज और प्रशासन ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे अन्य घाटों पर भी स्नान करें और महाकुंभ के इस पावन अवसर का लाभ उठाएं.
महाकुंभ में स्नान न केवल शारीरिक शुद्धि बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक शांति का भी प्रतीक है. शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती और अन्य संतों ने श्रद्धालुओं से अनुरोध किया कि वे संयम, धैर्य और सद्भाव के साथ स्नान करें और इस महायोग का पूर्ण लाभ उठाएं.