कर्नाटक में चल रहे मुडा जमीन घोटाले ने राजनीति, प्रशासन और न्यायिक प्रणाली को एक साथ जोड़ते हुए कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री सिद्दरमैया के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ-साथ उनके परिवार पर भी आरोप लगाए गए हैं। मुडा, जो कि कर्नाटक राज्य का शहरी विकास प्राधिकरण है, किफायती आवास और शहरी विकास की दिशा में एक अहम भूमिका निभाता है। यह एजेंसी, खासकर 2009 में शुरू की गई 50:50 योजना के तहत, जमीन खोने वाले लोगों को पुनर्निर्मित भूमि का 50 प्रतिशत हिस्सा देने का काम करती थी। हालांकि, 2020 में भाजपा सरकार ने इस योजना को रद्द कर दिया था, जिससे इस मामले में राजनीति का भी संकेत मिलता है।
सीएम सिद्दरमैया के खिलाफ जो आरोप लगाए गए हैं, उनमें मुख्य रूप से यह कहा जा रहा है कि उन्होंने मुडा के माध्यम से जमीन के अवैध आवंटन में हिस्सा लिया है। सिद्दरमैया और उनकी पत्नी बीएम पार्वती पर आरोप है कि उन्होंने इस योजना के जरिए फायदा उठाया। हालांकि, सिद्दरमैया ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि उन्हें कोर्ट से न्याय मिलने का पूरा विश्वास है। उनके अनुसार, यह पूरा मामला राजनीतिक प्रेरणा से प्रेरित है और इसका उद्देश्य उनकी छवि को धूमिल करना है। इसके अलावा, उन्होंने यह भी बताया कि हाई कोर्ट ने ईडी द्वारा उनकी पत्नी को जारी की गई नोटिस पर रोक लगा दी है, जो इस मामले में एक और महत्वपूर्ण मोड़ है।
वहीं, कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता आर अशोक ने लोकायुक्त की जांच पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इसे महज एक दिखावा बताते हुए यह आरोप लगाया कि लोकायुक्त की रिपोर्ट का उद्देश्य सिद्दरमैया को बचाना है। उनके अनुसार, यह रिपोर्ट लोकायुक्त की जांच नहीं, बल्कि एक “सिद्दरमैया बचाओ रिपोर्ट” है, जो इस पूरे मामले में निष्पक्षता की कमी को दर्शाती है। यह बयान विपक्षी दलों द्वारा सरकार पर दबाव बनाने के एक तरीके के रूप में देखा जा सकता है, जो यह साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सरकार और उसके नेताओं का इस घोटाले में संलिप्तता है।
इस घटनाक्रम से यह साफ दिखाई देता है कि राजनीति और प्रशासन एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं, और ऐसे मामलों में आम जनता का भरोसा और न्याय प्रणाली की निष्पक्षता सवालों के घेरे में आती है। विपक्षी दलों के आरोपों के बावजूद, मुख्यमंत्री सिद्दरमैया का दावा है कि वे कोर्ट से पूरी तरह से न्याय की उम्मीद करते हैं, और इसे राजनीति से प्रेरित आरोपों के रूप में देख रहे हैं।
इसके अलावा, मुडा घोटाले में कर्नाटक के शहरी विकास मंत्री बिरथी सुरेश ने भी अपनी संलिप्तता से इनकार किया है, और यह साफ किया है कि न तो उन्होंने और न ही मुख्यमंत्री की पत्नी ने इस मामले में कोई भूमिका निभाई है। हालांकि, आरोपितों के खिलाफ कई तरह की जांचें चल रही हैं, जिनमें ईडी और लोकायुक्त की जांच प्रमुख हैं। इस मामले में जद एस विधायक जीटी देवेगौड़ा के खिलाफ भी शिकायत दर्ज की गई है, जिसमें आरोप है कि उन्होंने मुडा से अवैध रूप से 19 साइटें हासिल की थीं।
इन सभी घटनाओं से यह लगता है कि मुडा घोटाला सिर्फ एक भूमि आवंटन के मामले तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राजनीति, प्रशासन और भ्रष्टाचार के जटिल रिश्तों को उजागर करने का एक माध्यम बन चुका है। चाहे कोर्ट का फैसला जो भी हो, यह मामला कर्नाटक के राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में काफी अहम मोड़ ले सकता है।