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कश्मीर में ‘दूध गंगा’ के प्रदूषण पर बनी लघु फिल्म को मानवाधिकार आयोग का 2024 का प्रथम पुरस्कार

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Human Rights Commission's first prize of 2024 for a short film made on the pollution of 'Doodh Ganga' in Kashmir

इंजीनियर अब्दुल रशीद भट की फिल्म ‘दूध गंगा-घाटी की मरती हुई जीवन रेखा’ को मानवाधिकार संबंधी विषयों पर लघु फिल्मों के लिए 2024 का भारतीय राष्ट्रीय मानवाधिाकर आयोग (एनएचआरसी) का दो लाख रुपये का पहला पुरस्कार दिया गया है।

एनएनआरसी ने बुधवार को राजधानी में अपने परिसर में 2024 में मानवाधिकारों पर अपनी लघु फिल्म प्रतियोगिता के सात विजेताओं को सम्मानित करने और पुरस्कार प्रदान करने के लिए एक समारोह आयोजित किया।

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समारोह को संबोधित करते हुए, एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम ने कहा कि आयोग का उद्देश्य मानवाधिकारों को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने के लिए जागरूकता पैदा करना है। मानवाधिकारों पर इसकी लघु फिल्म प्रतियोगिता पिछले एक दशक से इस उद्देश्य को बहुत प्रभावी ढंग से पूरा कर रही है। इस अवसर पर एनएचआरसी के सदस्य न्यायमूर्ति (डॉ) बिद्युत रंजन सारंगी और विजया भारती सयानी, महासचिव भरत लाल और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

एनएचआरसी, भारत के निदेशक लेफ्टिनेंट कर्नल वीरेंद्र सिंह ने पुरस्कार विजेताओं के नामों की घोषणा की। जम्मू-कश्मीर की प्राचीन दूध गंगा नदी प्रदूषण के मुद्दे को उजागर करते वृत्त चित्र ‘ गंगा-घाटी की मरती हुई जीवन रेखा’ को प्रथम पुरस्कार की घोषणा की गयी। इस फिल्म में कश्मीर घाटी के लोगों की समग्र भलाई के लिए इस नदी को पुनर्जीवित किए जाने की आवश्यकता को रखांकित किया गया है। फिल्म अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में है और इसके उपशीर्षक अंग्रेजी में हैं।

इसी तरह 1.5 लाख रुपये का दूसरा पुरस्कार, एक ट्रॉफी और एक प्रमाण पत्र आंध्र प्रदेश के कदारप्पा राजू की ‘फाइट फॉर राइट्स’ को दिया गया। फिल्म बाल विवाह और शिक्षा के मुद्दे को उठाती है तमिलनाडु के आर. रविचंद्रन द्वारा ‘गॉड’ को एक लाख रुपये, एक ट्रॉफी और एक प्रमाण पत्र दिया गया। मूक फिल्म में एक बूढ़े नायक के माध्यम से पीने योग्य पानी के मूल्य को बढ़ाया गया है।

कार्यक्रम में चार फिल्मों को ‘विशेष उल्लेख का प्रमाण पत्र’ प्रदान किया गया, जिसमें प्रत्येक को 50,000 रुपये दिए गए। इनमें शामिल हैं: तेलंगाना के हनीश उंद्रमतला की ‘अक्षराभ्यासम’; तमिलनाडु के आर. सेल्वम की ‘विलायिला पट्टाथारी (एक सस्ता स्नातक)’; आंध्र प्रदेश के मदका वेंकट सत्यनारायण की ‘सीता का जीवन’ और आंध्र प्रदेश के लोटला नवीन की ‘मानव बनें’।

पुरस्कार विजेताओं ने अपनी पुरस्कार विजेता लघु फिल्मों के निर्माण के पीछे के विचारों को भी साझा किए।

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