मंगलवार को असम सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए अपने बयान में बताया कि अपराधियों के साथ पुलिस की मुठभेड़ों के दौरान 2014 के सर्वोच्च अदालत के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया गया है। असम सरकार ने यह भी कहा कि सुरक्षा बलों के जवानों को बेवजह निशाना बनाना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से उनके मनोबल में कमी आ सकती है, खासकर उन कठिन परिस्थितियों में जो वे काम करते हैं।
इस बयान के बाद सुप्रीम कोर्ट ने असम में हुए फर्जी मुठभेड़ों के मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मई 2021 से अगस्त 2022 के बीच हुए 171 मुठभेड़ों को फर्जी बताते हुए दायर की गई याचिका पर विचार किया। याचिका में इन मुठभेड़ों की उच्च स्तरीय जांच की मांग की गई थी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा कि असम सरकार ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किए गए दिशा-निर्देशों का पूरी तरह से पालन किया है। उन्होंने कहा, “अगर सुरक्षा बलों के जवान दोषी पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, लेकिन अगर वे दोषी नहीं पाए गए तो उन्हें राज्य सरकार की सुरक्षा मिलेगी।”
तुषार मेहता ने यह भी कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि याचिकाकर्ता का दावा सही है, क्योंकि उन्हें यह नहीं मालूम कि याचिकाकर्ता कौन हैं और उन्होंने यह मान लिया है कि सभी मुठभेड़ फर्जी हैं। याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया था कि 2014 के दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया था। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 4 फरवरी की सुनवाई में असम सरकार से यह जवाब मांगा था कि क्या इन दिशा-निर्देशों का पालन किया गया है या नहीं।