भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को लेकर कई बार उनके सम्मान में स्मारक स्थल बनाने की मांग उठी, लेकिन 2013 में यूपीए सरकार ने इसे खारिज कर दिया था। यह घटना उस समय की है जब डॉ. सिंह को लेकर कई राजनेताओं और आम नागरिकों ने उनके कार्यकाल के दौरान किए गए ऐतिहासिक कार्यों को ध्यान में रखते हुए स्मारक स्थल बनाने की मांग की थी। आपको बता याद दिलाते चलें की डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उनके नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था ने महत्वपूर्ण सुधारों का सामना किया, जैसे कि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद उनके द्वारा लागू किए गए सुधारों ने भारत को वैश्विक आर्थिक मंच पर एक प्रमुख स्थान दिलाया। इसके अलावा, उनका कार्यकाल कई महत्वपूर्ण नीतिगत फैसलों से भरा था, जिसमें परमाणु समझौता, औद्योगिक विकास और सामाजिक कल्याण योजनाएं शामिल थीं। विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा यह मांग उठाई गई कि डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को याद रखने के लिए उनके लिए एक स्मारक स्थल बनाया जाए। यह मांग मुख्य रूप से उन लोगों द्वारा की गई थी जो उनके कार्यकाल के दौरान किए गए आर्थिक सुधारों और स्थिर नेतृत्व को सराहते थे। उनके समर्थक मानते थे कि डॉ. सिंह ने भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था में एक नई दिशा दी और उनके योगदान को भविष्य की पीढ़ियों के लिए याद रखा जाना चाहिए। अब एक बार फिर से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने हाल ही में इस मांग को दोबारा उठाई थी, मगर आपको बता दे की इस मांग को केंद्र सरकार ने एक बार फिर से खारिज कर दिया है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस प्रस्ताव को पेश करते हुए कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह के योगदान को यादगार बनाने के लिए एक विशेष स्मारक स्थल होना चाहिए। खड़गे का तर्क था कि डॉ. सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था और विकास में अभूतपूर्व योगदान दिया है और उनके सम्मान में यह कदम उठाना उचित होगा। लेकिन केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए इसे अस्वीकार्य बताया। सरकारी सूत्रों के अनुसार, स्मारक स्थलों की संख्या को लेकर पहले से ही सीमाएं तय की गई हैं और इस प्रस्ताव को स्वीकार करना सही नहीं है।केंद्र सरकार के इस फैसले के बाद कांग्रेस नेताओं में असंतोष देखा जा रहा है। हालांकि, विपक्ष ने इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह डॉ. मनमोहन सिंह जैसे महान नेता के प्रति सम्मान की कमी को दर्शाता है। डॉ. मनमोहन सिंह, जो दो बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, को उनके कार्यकाल के दौरान आर्थिक सुधारों और शांतिपूर्ण नेतृत्व के लिए सराहा गया है। उनके योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाने की इस मांग ने एक बार फिर बहस को जन्म दे दिया है।