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दिल्ली में बीजेपी का संकट: सत्ता से दूरी के पीछे की वजहें

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BJP's crisis in Delhi: Reasons behind distance from power

दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी (BJP) पिछले दो दशकों से सत्ता में वापसी करने में नाकाम रही है। विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) के दबदबे और बीजेपी की रणनीतिक कमजोरियों ने इसे एक बड़ा राजनीतिक संकट बना दिया है। 6 जनवरी 2025 तक, दिल्ली की राजनीति में बीजेपी के सामने कई चुनौतियां बनी हुई हैं।

2013 में दिल्ली की राजनीति में प्रवेश करने के बाद आप ने भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उपजी अपनी छवि को मजबूत किया। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, और पानी जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जनता का विश्वास जीता। बीजेपी इन स्थानीय मुद्दों पर आप के मुकाबले ठोस रणनीति नहीं बना पाई।

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दिल्ली बीजेपी में स्थानीय नेतृत्व की कमी हमेशा चर्चा का विषय रही है। पार्टी अक्सर अपने राष्ट्रीय नेताओं के सहारे चुनाव लड़ती है, लेकिन स्थानीय मुद्दों को उठाने और जनता से जुड़ने में विफल रहती है। इससे आम जनता के साथ भावनात्मक जुड़ाव कमजोर हो जाता है।

दिल्ली में मुस्लिम समुदाय की बड़ी आबादी है, जो परंपरागत रूप से बीजेपी को वोट नहीं देता। पार्टी ने अक्सर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का सहारा लिया है, जो एक बड़ी आबादी को उससे दूर कर देता है।

AAP सरकार की योजनाएं, जैसे मुफ्त बिजली-पानी और मोहल्ला क्लीनिक, सीधे जनता को लाभ पहुंचाती हैं। बीजेपी इन योजनाओं का प्रभावी विकल्प पेश करने में विफल रही है।

बीजेपी ने दिल्ली चुनावों में भी राष्ट्रवादी मुद्दों को प्रमुखता दी, लेकिन विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे ज्यादा प्रभावी होते हैं।

बीजेपी के सामने दिल्ली में सत्ता हासिल करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। पार्टी को स्थानीय नेतृत्व विकसित करने, जमीनी स्तर पर जुड़ाव बढ़ाने और लोगों की वास्तविक समस्याओं का समाधान देने वाली योजनाएं पेश करने की जरूरत है। बिना इन बदलावों के, दिल्ली में बीजेपी का संकट लंबे समय तक बना रह सकता है।

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