Home राष्ट्रीय अतुल सुभाष केस ने उठाए दहेज कानून की खामियों पर सवाल

अतुल सुभाष केस ने उठाए दहेज कानून की खामियों पर सवाल

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Atul Subhash's suicide and demand for review of dowry harassment law

बेंगलुरु के सॉफ्टवेयर इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने पूरे देश का ध्यान खींचा है। अपनी पत्नी और ससुरालवालों पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए, अतुल ने आत्महत्या से पहले 24 पन्नों का सुसाइड नोट और 80 मिनट का वीडियो रिकॉर्ड किया। अतुल की इस घटना ने दहेज उत्पीड़न और उससे जुड़े कानूनों के दुरुपयोग को लेकर देशभर में बहस छेड़ दी है। कई लोग दहेज कानून की समीक्षा और इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए सुधार की मांग कर रहे हैं। इस घटना के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न (आईपीसी की धारा 498ए) के दुरुपयोग को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। अदालत ने वैवाहिक विवादों के मामलों में निर्दोष स्वजनों को कानूनी प्रक्रिया से बचाने के लिए सतर्कता बरतने की आवश्यकता पर जोर दिया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने कहा कि बिना ठोस सबूतों के पारिवारिक सदस्यों को अभियोजन का हिस्सा बनाना न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
तेलंगाना हाई कोर्ट के एक फैसले को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामान्य और व्यापक आरोपों के आधार पर आपराधिक कार्यवाही नहीं चलाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ता तय करने के लिए 8 सूत्रीय फॉर्मूला जारी किया, जिसमें शामिल हैं। दोनों पक्षों की सामाजिक और वित्तीय स्थिति। पत्नी और आश्रित बच्चों की उचित जरूरतें। पति-पत्नी की व्यक्तिगत योग्यताएं और रोजगार की स्थिति। आवेदक की स्वतंत्र आय या संपत्ति। वैवाहिक जीवन के दौरान पत्नी का स्तर। पारिवारिक जिम्मेदारियों के लिए किए गए त्याग। मुकदमेबाजी की लागत। पति की आय, जिम्मेदारियां और देनदारियां। अतुल सुभाष की आत्महत्या ने दहेज कानून के दुरुपयोग और इससे जुड़ी प्रक्रियाओं की खामियों को उजागर किया है। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और निर्देश इस दिशा में संतुलन लाने का प्रयास हैं ताकि निर्दोष लोग शोषण से बच सकें और कानून का सही उद्देश्य पूरा हो सके।