
देश का सबसे बड़ा कोचिंग हब कोटा एक बार फिर छात्रों की आत्महत्या के मामलों को लेकर चर्चा में है. बुधवार, 23 जनवरी 2025 को, पांच घंटे के भीतर दो छात्रों ने आत्महत्या कर ली। यह घटनाएं कोटा के कोचिंग माहौल और छात्रों पर बढ़ते शैक्षणिक दबाव पर गंभीर सवाल खड़े करती हैं.
पहली घटना सुबह 9 बजे की है, जब 24 वर्षीय नीट एस्पिरेंट ने आत्महत्या कर ली. यह छात्रा गुजरात के अहमदाबाद की रहने वाली थी और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रही थी. इसके कुछ घंटे बाद, दोपहर करीब 2 बजे, 18 वर्षीय जेईई एस्पिरेंट का शव उसके कमरे में पाया गया. यह छात्र असम का निवासी था और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोटा आया था.
दोपहर को छात्र की मां बेटे का हौसला बढ़ाने कोटा पहुंची थीं. उन्होंने जब बेटे के कमरे का दरवाजा खोला, तो वह मृत अवस्था में मिला. इस दृश्य को देखते के साथ मां बेहोश हो गईं. मौके पर मौजूद लोग दोनों को अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टर ने छात्र को मृत घोषित कर दिया.
आपको बता दें कि इस साल जनवरी के केवल 22 दिनों में कोटा में आत्महत्या की यह छठी घटना है. इससे पहले –
7 जनवरी: हरियाणा के महेंद्रगढ़ के नीरज जाट (जेईई एस्पिरेंट) ने हॉस्टल में आत्महत्या की.
8 जनवरी: मध्य प्रदेश के अभिषेक (जेईई एस्पिरेंट) पीजी में फंदे से लटके पाए गए.
16 जनवरी: उड़ीसा के अभिजीत गिरी (जेईई एस्पिरेंट) ने हॉस्टल में सुसाइड किया.
17 जनवरी: बूंदी के एक छात्र ने खिड़की के कुंडे से लटककर जान दे दी.
और अब 22 जनवरी को अहमदाबाद की नीट एस्पिरेंट और असम के जेईई एस्पिरेंट ने आत्महत्या कर ली.
कोटा में साल 2024 में 19 छात्रों ने आत्महत्या की थी, जबकि 2023 में यह संख्या 29 तक पहुंच गई थी. प्रशासन ने इस गंभीर स्थिति को देखते हुए कई कदम उठाए हैं. हॉस्टल के कमरों में एंटी-हैंगिंग डिवाइस लगाए गए, और छात्रों के लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी शुरू किया गया है. बावजूद इसके, आत्महत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है.
कोटा की घटनाएं देश की शिक्षा प्रणाली पर सवाल खड़े करती हैं. शैक्षणिक दबाव, प्रतिस्पर्धा, और मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा छात्रों को घातक निर्णय लेने पर मजबूर कर रही है. ऐसे में कोचिंग संस्थानों, माता-पिता और प्रशासन को मिलकर छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है.
छात्रों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है ताकि कोटा में ‘सपनों के शहर’ का सपना ‘दबाव के शहर’ में बदलने से रोका जा सके.