क्रिकेट का एक चर्चित किस्सा है। एक ऐसे मैच का ये किस्सा है, जिसके बारे में उस समय के दो धुरंधर खिलाड़ियों को पता चल गया कि ये फिक्स है। सटोरियों ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके ये तय किया था कि भारत को ये मैच हारना है। लेकिन, इन दोनों ने ये मैच भारत को जिता दिया। इनमें से एक को लोग दादा कहकर पुकारते हैं। दूसरा, अपने गुरु का बेहतरीन शागिर्द निकला और उसने अपने बेटे का नाम अर्जुन रखा। फिल्म ‘टेस्ट’ उस मैच की लोकेशन से कुछ ही दूर भारत के चेपक स्टेडियम में चल रहे एक टेस्ट मैच की पृष्ठभूमि में बुनी गई है। अर्जुन नाम का एक बेहतरीन खिलाड़ी है। टीम मैनेजमेंट उसे रिटायर करने पर तुला है। वह अपना आखिरी मैच शान से जीतना चाहता है। लेकिन, सब कुछ वैसा ही होता, जैसा हम सोचते हैं तो फिर आखिर हमारे जीवन का टेस्ट कैसे होगा? ‘फर्जी’, ‘गन्स एंड गुलाब्स’ और ‘फैमिली मैन’ लिखने वाले सुमन कुमार ने फिल्म के निर्देशक एस शशिकांत के साथ मिलकर क्रिकेट की पृष्ठभूमि में एक अच्छा थ्रिलर लिखा है। आर माधवन और विजय सेतुपति को लेकर शानदार तमिल फिल्म ‘विक्रम वेधा’ बनाने वाले निर्माता एस शशिकांत अब निर्देशन में हाथ आजमाने उतरे हैं। विराज सिंह गोहिल उनके सिनेमैटोग्राफर है। फोटोग्राफी के शौकीनों को तो ये फिल्म सिर्फ विराज के वाइड एंगल लेंस से बने फ्रेम देखने के लिए ही देख डालनी चाहिए। जाहिर है माधवन और शशिकांत के बीच जो भी केमिस्ट्री, फिजिक्स और जियोग्राफी है, वह कमाल की है। फिल्म के बारे में मैंने जो इस रिव्यू के पहले पैराग्राफ में बताया, वह फिल्म की कहानी का एक पहलू है। फिल्म का हीरो है अमेरिका के शीर्षस्थ वैज्ञानिक संस्थान मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) से डबल डॉक्टरेट करने के बावजूद अपने देश भारत आकर इसकी तस्वीर बदलने की ख्वाहिश रखने वाला साइंटिस्ट सरवनन।

इन्वेस्ट यूपी का वह किस्सा तो ताजा ताजा ही है कि कैसे सोलर एनर्जी का प्लांट लगाने वाली एक कंपनी से इस विभाग के मुखिया आईएएस अभिषेक ने कथित रूप से रिश्वत मांगी और मामला खुलने पर मुख्यमंत्री ने उन्हें चलता कर दिया। ऐसे तमाम अभिषेकों से उत्तर प्रदेश में मेरा पाला तो अक्सर पड़ता रहता है। सरवनन ने देश को पेट्रोल और डीजल से मुक्ति दिलाने के लिए पानी से हाइड्रो फ्यूल बनाने की तकनीक तैयार कर ली है, लेकिन उसका प्रोजेक्ट मंजूर हो, इसके लिए उससे पांच करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी गई है। फिल्म ‘टेस्ट’ का असली ड्रामा अर्जुन और सरवनन को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में सामने आता है। सरवनन की पत्नी के किरदार में यहां है नयनतारा। कुमुदा उनके किरदार का नाम है। उसी स्कूल में पढ़ाती हैं, जहां अर्जुन का बेटा आदित्य पढ़ता है। कुमुदा के पिता कभी अर्जुन के कोच थे। कुमुदा अपने पहले क्रश अर्जुन को अब भी मानती है। अर्जुन उसे मिलता है तो पहचानता भी नहीं है। आदित्य पर कुमुदा खूब प्यार लुटाती है। और अपना बच्चा पाने की अपने पति सरवनन से लगातार जिद करती है, जिसका स्पर्म काउंट अब जाकर नौ महीने के इलाज के बाद ठीक हुआ है। सिनेमा बस इतना ही प्रोग्रेसिव होता रहना चाहिए कि दंपती को बच्चा न हो रहा तो दोष बस औरत में ही न निकाले। यहां इलाज मर्द का हो रहा है। और, इस मर्द की मर्दानगी की चोट तब लगती है जब उसकी पत्नी उसे आईवीएफ के पांच लाख रुपये न जुटा पाने के लिए ललकारती है। सरवनन ने पचास लाख रुपये का तो लोन ले रखा है। ये कर्ज देने वाले उसे तलाशते फिर रहे हैं और उसके पास पैसा है नहीं। फिल्म ‘टेस्ट’ शुरू होती है तो उससे पहले परदे पर हीरो और विलेन की परिभाषाएं लिखी आती हैं। हीरो यानी वो इंसान जो दुनिया बचाने के लिए अपने करीबी की जान की परवाह न करे। और, विलेन? विलेन वो जो अपने करीबी को बचाने के लिए दुनिया को भी तबाह कर दे। दोनों लाइनों को फिर से पढ़कर देखिए। अपने अब तक के किए कारनामों को फिर से याद कीजिए और सोचिए आप कौन हैं? कहां तक जाएंगे आप अपनों के लिए? हीरो और विलेन की इन्हीं दो लाइनों की परिभाषाओं पर बार बार तौला जा रहा है सरवनन।
चाहे तो अमेरिका की किसी कंपनी लाखों डॉलर की नौकरी अब भी कर सकता है। उसका साथी उसे बार बार इसके लिए उकसाता भी है। लेकिन, वह देशभक्त है। देश की तस्वीर बदलना चाहता है। उसका हाइड्रो फ्यूल प्रोजेक्ट फिल्म के आखिरी दृश्य में मंजूर होता भी दिखता है, लेकिन वहां तक पहुंचने से पहले हीरो बनने की ख्वाहिश रखने वाला एक मजबूर इंसान कैसे विलेन बनता दिखता है, ये परदे पर देखने वाली कहानी है। पचास लाख रुपये उसे कर्ज चुकाने के लिए चाहिए, वह कर्ज जो उसने देश का भाग्य बदल देने वाले प्रोजेक्ट के लिए लिया है। पांच लाख रुपये उसकी पत्नी को मां बनने के लिए चाहिए। और, पांच करोड़ रुपये रिश्वत के भी तो पहुंचाने हैं। इंसान बुरा आदमी ऐसे ही नहीं कहलाता, उसे तमाम लोगों का भला उससे पहले करना होता है। फिल्म ‘टेस्ट’ मूल रूप से तमिल में बनी ओटीटी फिल्म है। अगर इसे आप मूल भाषा में ही सबटाइटल्स के साथ देखेंगे तो इसे देखने का असली आनंद आएगा। आर माधवन से पहले श्रीदेवी, जया प्रदा जैसी पैन इंडियन हीरोइनें तो तमाम हुईं, पैन इंडिया हीरो पहले वह ही हैं। ‘अलाई पायुथे’में मणि रत्नम ने उन्हें पहचाना, ‘मिन्नाले’ में गौतम वासुदेव मेनन ने उनके नाम का शामियाना ताना और इसी फिल्म की हिंदी रीमेक ‘रहना है तेरे दिल में’ से हिंदी दर्शकों ने उन्हें खूब जाना। बीते तीन दशक से सिनेमा में तरह तरह के किरदार करते आ रहे माधवन के लिए फिल्म ‘टेस्ट’ में सरवनन का किरदार एक ऐसे लिटमस टेस्ट की तरह रहा, जिसे करने के बाद वह खुद भी कई रातों को सो नहीं पाए होंगे। दिन रात अपने काम में खोए रहने वाले एक शख्स को जब समाज, सरकार और स्त्री से ताड़ना मिलती है तो वह कैसे खुद पर से काबू खो देता है, इसका सटीक अभिनय माधवन ने इस किरदार में किया है। अपने खिचड़ी बालों को वह अपना हथियार बनाते हैं, हर समय पसीने से लथपथ दिखकर वह मध्यमवर्ग की मजबूरियों को दर्शाते हैं और फिर जब दूसरों के बनाए पैमाने पर खुद को ‘विजेता’ बनाने के लिए हद से गुजर जाते हैं, तो ये उनके अभिनय का एक नया आसमान होता है। माधवन को नेशनल अवार्ड दिला सकता है, उनका ये अभिनय। और, अब बात नयनतारा की। उनका मूल नाम जानते हैं आप? डायना मरियम कूरियन! गले में लंबी माला लटकाए कोई हीरोइन साड़ी में कितनी खूबसूरत दिख सकती है, उसका एक अलग ही पैमाना नयनतारा ने सिनेमा में सेट किया है।

फिल्म ‘जवान’ में जो लोग भी उन्हें देख चुके हैं, वह उनकी बढ़ती उम्र के चढ़ते जादू के मोहपाश में बंधे बिना रह नहीं सके हैं। नयनतारा का फ्रेम में होना ही सिनेमा की खूबसूरती बढ़ा देता है। यहां वह एक आत्मसम्मानी अध्यापक कुमुदा के किरदार में हैं। अपने बचपन के क्रश के बेटे पर उन्हें खूब प्यार आता है। प्रिसिंपल समझाती भी है कि टीचर और मदर का फर्क उन्हें समझना चाहिए पर उसे ये भी याद रहता है कि क्या कोई मां दूसरे के बच्चे को मां जैसा प्यार नहीं दे सकती है। उसने एमआईटी से निकले साइंटिस्ट से प्रेम विवाह किया है। मोटरसाइकिल पर उसके साथ घूमती तो है लेकिन अर्जुन की रईसी उसकी आंखों में झलकती रहती है। वह मौके तलाशती है अर्जुन के बेटे आदित्य के करीब रहने के। मौका उसे फिर मिलता है जब आदित्य घर से भाग आता है। कुमुदा अपने पति से परेशान है। दो परेशान आत्माएं मिलकर शांति के पल बिताना चाहती हैं और उधर चेपक स्टेडियम में चल रहा मैच निर्णायक मोड़ ले लेता है। नयनतारा ने इस पल पल बदलते किरदार को बहुत खूबसूरती से निभाया है। कुमुदा व सरवनन ऐसे लगता है जैसे कि एक ही धुरी पर बंधे दो अलग अलग ध्रुव हैं, जैसे जैसे जीवन की धुरी घूमती रहती है, उनके किरदारों का रंग भी बदलता रहता है। फिल्म में सिद्धार्थ उत्प्रेरक की भूमिका में हैं। भारतीय क्रिकेट टीम में कभी धोनी और गांगुली के बीच जो कुछ हुआ होगा, उसकी एक झलक भी है। एक काबिल बैटर की भूमिका में सिद्धार्थ ने खूब प्रभावित किया है। विराज सिंह गोहिल की तारीफ मैंने ऊपर कर ही दी हैं। फिल्म के बैकग्राउंड म्यूजिक से थोड़ी शिकायत बनी रह जाती है कि पहली बार जब बांसुरी गूंजती है तो भ्रम होता है कि कहीं बांसुरी वादक ‘पहले भी मैं तुमसे मिला..’की धुन तो नहीं छेड़ने वाला है। क्रिकेट कमेंट्री, टीमों का स्कोर, और परदे पर सबटाइटल्स में दिखने वाले स्कोर में एकरूपता नहीं हैं। कॉन्टीन्यूटी देखने वाले की ये बड़ी चूक है। शक्तिश्री गोपालन ने हालांकि गाने फिल्म के अच्छी धुनों के साथ रचे हैं। प्रोडक्शन डिजाइनर की टीम ने अच्छा काम किया है। कॉस्ट्यूम डिजाइनर पूर्णिमा रामास्वामी को सितारों की वेशभूषा पर और काम करना चाहिए था और सिद्धार्थ की सफेद शर्ट पर वी आकार की काली चिप्पियां लगाने से बचना चाहिए था। फिल्म आधे हिस्से तक सरस बहती है और उसके बाद थोड़ा खिंचने सी लगती है, वहां इसे थोड़ा और संपादित कर दिया जाए तो बेहतर।