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आनंदजी वीरजी: उन यादगार धुनों के पीछे, जिन्होंने गायक कुमार सानू, उदित नारायण को बनाया मशहूर

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Anandji Veerji: Behind the memorable tunes that made singers Kumar Sanu

बॉलीवुड संगीत के दिग्गज संगीतकार आनंदजी वीरजी शाह आज अपने 92वें जन्मदिन का जश्न मना रहे हैं। इस मौके पर उनके द्वारा रचित अनगिनत हिट गानों को याद करना किसी भी संगीत प्रेमी के लिए एक सुखद अनुभव है। उनकी धुनों ने बॉलीवुड को कई यादगार गाने दिए, जैसे ‘पल पल दिल के पास’, ‘नीले नीले अंबर पर’, ‘बेखुदी में सनम’, और ‘क्या खूब लगती हो’। इन गानों की लोकप्रियता आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई है। आनंदजी वीरजी शाह ने अपने करियर में संगीत की दुनिया में एक अहम स्थान बनाया। उनका संगीत भारतीय सिनेमा की धारा को न केवल प्रभावित करता था, बल्कि उनकी रचनाओं ने बॉलीवुड के एक से बढ़कर एक गायकों को भी पहचान दिलाई। वे और उनके भाई कल्याणजी ने मिलकर 250 से ज्यादा फिल्मों के गानों को संगीतबद्ध किया। इस जोड़ी का योगदान भारतीय सिनेमा में अनमोल रहा है, और उनकी धुनों ने हमेशा दर्शकों का दिल जीता। आनंदजी का संगीत से गहरा जुड़ाव बचपन से ही था। उनके दादा और परदादा गुजरात के मशहूर लोक संगीतकार थे, और यही संगीत के प्रति उनकी रुचि को बढ़ावा देने वाला कारण बना। एक खबर के मुताबिक, जब उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, तब एक संगीत शिक्षक ने उन दोनों भाईयों को संगीत सिखाने का निर्णय लिया। हालांकि, वह शिक्षक अपनी फीस चुका नहीं पा रहा था, तो उसने आनंदजी और कल्याणजी को बिना पैसे के संगीत की शिक्षा दी। यही शिक्षा और कड़ी मेहनत थी जिसने दोनों को भारतीय संगीत उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। आनंदजी और कल्याणजी की जोड़ी ने भारतीय सिनेमा को एक से बढ़कर एक बेहतरीन संगीत दिया। उनके द्वारा रचित संगीत का जादू फिल्मों में पूरी तरह से समाहित हो जाता था। इनकी जोड़ी ने 17 गोल्डन जुबली और 39 सिल्वर जुबली फिल्मों में संगीत दिया। इसके साथ ही, इन दोनों की जोड़ी ने कई कलाकारों को पहचान दिलाई, जिनमें मशहूर गायकों की सूची भी शामिल है, जैसे अल्का याग्निक, कुमार सानू, उदित नारायण, और सुनिधि चौहान। आनंदजी और कल्याणजी ने अपने करियर की शुरुआत 1960 में फिल्म ‘सट्टा बाजार’ से की थी। इस फिल्म के संगीत ने उन्हें एक महत्वपूर्ण पहचान दिलाई और इसके बाद उनकी जोड़ी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। ‘मदारी’ और ‘सट्टा बाजार’ जैसी फिल्में उनके करियर की शुरुआती मील के पत्थर साबित हुईं। उनकी जोड़ी ने कई फिल्मों को संगीतबद्ध किया, जैसे ‘दुल्हा-दुल्हन’, ‘जब-जब फूल खिले’, ‘हिमालय की गोद में’, ‘कोरा कागज’, ‘डॉन’, ‘उपकार’, ‘सफ़र’, ‘जॉनी मेरा नाम’, ‘महल’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’ और ‘कुर्बानी’ जैसी हिट फिल्मों में उनकी धुनों ने लोगों के दिलों में हमेशा के लिए अपनी जगह बना ली। संगीत की दुनिया में उनके योगदान को न केवल फिल्म उद्योग ने सराहा, बल्कि उन्हें कई पुरस्कार भी मिले। साल 1975 में फिल्म ‘कोरा कागज’ के लिए आनंदजी और कल्याणजी की जोड़ी को फिल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। यह अवॉर्ड उन्हें उनके संगीत के प्रति उनकी समर्पण भावना और कड़ी मेहनत के लिए मिला।

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