हाल के रिसर्च से पता चला है कि दुनियाभर में हर 127वां व्यक्ति ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) से प्रभावित है. यह न्यूरोलॉजिकल स्थिति व्यक्ति के संज्ञानात्मक और सामाजिक कौशल को प्रभावित करती है. ये रिसर्च बताते हैं कि पुरुषों में इसकी संभावना महिलाओं की तुलना में लगभग दोगुनी होती है.
आपको बता दें कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक ऐसी स्थिति है जो बच्चे के दिमागी विकास को प्रभावित करती है. इसमें बच्चे को दूसरों से बात करने, समझने और मेल-जोल बढ़ाने में कठिनाई हो सकती है. इसके लक्षण हल्के या गंभीर हो सकते हैं, और हर व्यक्ति में अलग-अलग तरीके से दिख सकते हैं, जो मुख्य रूप से बचपन में लक्षण दिखाना शुरू करता है. प्रभावित व्यक्ति में सामाजिक संपर्क की चुनौतियां, दोहराव वाली गतिविधियां, और संचार कठिनाइयां देखी जाती हैं. यह विकार हल्के से लेकर गंभीर तक अलग-अलग स्तरों पर हो सकता है.
विशेषज्ञों का मानना है कि ऑटिज्म के बढ़ते मामलों की वजह सिर्फ बेहतर डायग्नोसिस नहीं है, बल्कि आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारक भी जिम्मेदार हो सकते हैं. इसके प्रमुख कारणों में शामिल हैं –
- आनुवंशिक प्रवृत्ति: यदि परिवार में किसी को ऑटिज्म है, तो अगली पीढ़ी में इसका जोखिम बढ़ जाता है.
- प्रसव से जुड़े जटिल कारक: समय से पहले जन्म या गर्भावस्था के दौरान संक्रमण ऑटिज्म के खतरे को बढ़ा सकता है.
- पर्यावरणीय प्रभाव: अत्यधिक प्रदूषण, कीटनाशकों का संपर्क और कुछ विशेष दवाओं का सेवन भी एक संभावित कारण हो सकता है.
शोधकर्ताओं का मानना है कि ऑटिज्म से जुड़े कुछ जीन पुरुषों में अधिक प्रभावी होते हैं, जिससे वे इस विकार के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं. इसके अलावा, महिलाओं में संज्ञानात्मक लचीलापन अधिक होता है, जिससे वे इस स्थिति के कुछ प्रभावों को कम कर सकती हैं.
ऑटिज्म के मामलों में वृद्धि को देखते हुए विशेषज्ञ समय पर निदान और सही हस्तक्षेप की सलाह देते हैं. व्यवहार थेरेपी, स्पीच थेरेपी और विशेष शिक्षा कार्यक्रमों से प्रभावित बच्चों और वयस्कों को मदद मिल सकती है.
समाज में ऑटिज्म को लेकर जागरूकता बढ़ाना और प्रभावित लोगों को सहयोग देना बेहद जरूरी है ताकि वे भी एक सामान्य और सम्मानजनक जीवन जी सकें.