प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि विविध भाषाओं वाले भारत में भाषाओं के बीच कभी कोई दुश्मनी नहीं रही, बल्कि भारतीय भाषाओं ने हमेशा एक-दूसरे को स्वीकारा और समृद्ध किया है।श्री मोदी ने कहा कि हमारी भाषाओं की विरासत एक समान है और इस विरासत ने भाषा के नाम पर देश को विभाजित करने के प्रयासों को विफल कर दिया है। श्री मोदी राजधानी में विज्ञान भवन में 98वें अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन कर रहे थे। उन्होंने मराठी को एक आदर्श भाषा बताया।उन्होंने कहा कि भाषा को समृद्ध बनाना और उसमें निपुणता हासिल करना हमारी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है और साथ ही उन्होंने हमसे भाषाओं के बारे में किसी भी तरह की गलत धारणा से दूर रहने की अपील भी की। उन्होंने यह भी कहा कि आज देश में हर भाषा को मुख्यधारा की भाषा के रूप में तवज्जो दी जा रही है। उन्होंने देश में मराठी सहित सभी प्रमुख भाषाओं में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए चल रहे प्रयासों का उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि अब महाराष्ट्र के युवा इंजीनियरिंग और मेडिकल सहित उच्च शिक्षा मराठी में प्राप्त कर सकेंगे। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अंग्रेजी भाषा में दक्षता की कमी के कारण मौजूदा प्रतिभाओं को नजरअंदाज करने की मानसिकता बदल गई है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन किसी भाषा या क्षेत्र तक सीमित नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि यह सभा महाराष्ट्र और देश के स्वतंत्रता आंदोलन के साथ-साथ इसकी सांस्कृतिक विरासत का सार भी है। प्रधानमंत्री ने कहा कि यह सम्मेलन 1878 में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन की पहली वर्षगांठ के बाद से भारत की 147 साल की यात्रा का गवाह है। उन्होंने उल्लेख किया कि विगत में महादेव गोविंद रानाडे, हरि नारायण आप्टे, माधव श्रीहरि अणे, शिवराम परांजपे, वीर सावरकर जैसी अनेक विभूतियों ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता की है।
श्री मोदी ने इस गौरवशाली परंपरा का हिस्सा बनने के लिए उन्हें आमंत्रित करने के लिए महाराष्ट्र के वरिष्ठ राजनेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री शरद पवार को धन्यवाद देते हुए देश और दुनिया भर के सभी मराठी प्रशंसकों को बधाई दी। प्रधानमंत्री ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में संत ज्ञानेश्वर के एक श्लोक का हवाला देते हुए कहा कि मराठी भाषा अमृत से भी मीठी है और इसीलिए उन्हें मराठी भाषा और संस्कृति से अपार प्रेम एवं लगाव है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वह कार्यक्रम में उपस्थित अनेक मराठी विद्वानों की तरह मराठी भाषा में पारंगत नहीं हैं, तथापि वह मराठी भाषा सीखने के लिए निरंतर प्रयास करते रहते हैं।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यह सम्मेलन ऐसे महत्वपूर्ण समय पर आयोजित किया जा रहा है जब हमारा देश छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की 350वीं वर्षगांठ, पुण्यश्लोक अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती और हमारे संविधान की 75वीं वर्षगांठ जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी बन रहा है, जिसे बाबासाहेब अंबेडकर के अथक प्रयासों से बनाया गया था।

उन्होंने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि एक शताब्दी पहले एक सुप्रसिद्ध मराठी व्यक्ति ने महाराष्ट्र की धरती में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का बीज बोया था जो अब एक महान वृक्ष बन गया है और अपनी शताब्दी मना रहा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पिछले 100 वर्षों में आरएसएस ने अनेक सांस्कृतिक प्रयासों के माध्यम से वेदों से लेकर विवेकानंद तक भारत की महान परंपरा और संस्कृति को आगे बढ़ाया है तथा इसे नई पीढ़ी तक पहुंचाया है। श्री मोदी ने कहा , “यह हमारा सौभाग्य है कि हमें भी लाखों अन्य लोगों की तरह देश के लिए जीने की प्रेरणा आरएसएस से मिली है।” उन्होंने स्वीकार किया कि आरएसएस के माध्यम से उन्हें मराठी भाषा और परंपरा से जुड़ने का अवसर मिला। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया कि कुछ महीने पहले उनकी सरकार ने मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया जबकि भारत और दुनिया भर में 12 करोड़ से अधिक मराठी भाषी दशकों से इस सम्मान का इंतजार कर रहे थे। उन्होंने कहा कि इस कार्य को करने का अवसर मिलना उनके जीवन का बहुत सौभाग्यशाली क्षण है। प्रधानमंत्री ने कहा, “भाषा सिर्फ संचार का माध्यम ही नहीं है, बल्कि हमारी संस्कृति की संवाहक भी है।” मराठी भाषा के महत्व के बारे में समर्थ रामदास जी के शब्दों का हवाला देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “मराठी एक आदर्श भाषा है, जो वीरता, सौंदर्य, संवेदनशीलता, समानता, सद्भाव, आध्यात्मिकता और आधुनिकता का प्रतीक है।” उन्होंने संत ज्ञानेश्वर, संत तुकाराम, संत रामदास, संत नामदेव, संत तुकादोजी महाराज, गाडगे बाबा, गोरा कुंभार और बहिणाबाई के योगदान का उल्लेख किया, जिन्होंने मराठी में भक्ति के मार्ग के माध्यम से समाज को एक नई दिशा दिखाई।
प्रधानमंत्री ने गजानन दिगंबर मडगुलकर और सुधीर फड़के द्वारा रचित आधुनिक गीतात्मक रामायण के प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि सदियों के उत्पीड़न के दौरान मराठी भाषा आक्रमणकारियों से मुक्ति की घोषणा बन गई थी। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज, संभाजी महाराज और बाजीराव पेशवा जैसे मराठा योद्धाओं की वीरता का उल्लेख किया, जिन्होंने निडरता से अपने दुश्मनों का सामना किया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वासुदेव बलवंत फड़के, लोकमान्य तिलक और वीर सावरकर जैसे योद्धाओं ने ब्रिटिश साम्राज्य को हिलाकर रख दिया था। श्री मोदी ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि किस प्रकार केसरी और मराठा जैसे समाचार पत्रों, कवि गोविंदराज की प्रेरक कविताओं और राम गणेश गडकरी के नाटकों ने राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा कि लोकमान्य तिलक ने मराठी में गीता रहस्य नामक पुस्तक लिखी, जिसने पूरे देश में नई ऊर्जा पैदा की। उन्होंने कहा, ‘‘मराठी भाषा और साहित्य ने समाज के शोषित और वंचित वर्गों के लिए सामाजिक मुक्ति के द्वार खोले हैं।’’ उन्होंने ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, महर्षि कर्वे और बाबासाहेब अंबेडकर जैसे महान समाज सुधारकों के योगदान का उल्लेख किया, जिन्होंने मराठी में नए युग की सोच को बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा कि मराठी भाषा ने देश को समृद्ध दलित साहित्य दिया है। श्री मोदी ने कहा कि आधुनिक सोच के कारण मराठी साहित्य में भी विज्ञान कथा को जन्म मिला। अतीत में आयुर्वेद, विज्ञान और तर्कशास्त्र में महाराष्ट्र के लोगों के महान योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस बात को रेखांकित किया कि इस संस्कृति ने हमेशा नए विचारों और प्रतिभाओं को अवसर दिया है, जिससे महाराष्ट्र की प्रगति हुई है। उन्होंने कहा कि मुंबई न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे देश की वित्तीय राजधानी बनकर उभरी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि साहित्य की चर्चा फिल्मों का उल्लेख किए बिना पूरी नहीं हो सकती। महाराष्ट्र और मुंबई ने मराठी फिल्मों और हिंदी सिनेमा दोनों का स्तर ऊंचा उठाया है। उन्होंने फिल्म ‘छावा’ की वर्तमान लोकप्रियता का उल्लेख किया, जिसमें शिवाजी सावंत के मराठी उपन्यास के माध्यम से संभाजी महाराज की बहादुरी का परिचय दिया गया है। उन्होंने यह भी आशा व्यक्त की कि अखिल भारतीय मराठी साहित्य महासंघ गोविंद रानाडे, हरिनारायण आप्टे, आचार्य अत्रे और वीर सावरकर जैसे महापुरुषों द्वारा स्थापित आदर्शों को आगे बढ़ाएगा। श्री मोदी ने इस बात पर प्रकाश डाला कि साहित्य सम्मेलन की परंपरा 2027 में 150 वर्ष पूरे कर लेगी, जब 100वां साहित्य सम्मेलन आयोजित किया जाएगा। उन्होंने सभी से इस अवसर पर आयोजित होने वाले समारोह को विशेष बनाने के लिए अभी से तैयारियां शुरू करने की अपील भी की।
प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया का उपयोग करके मराठी साहित्य की सेवा कर रहे अनेक युवाओं के प्रयासों की सराहना की और उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए सही मंच प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया।