
सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासी आबादी की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार के लिए एक अहम कदम उठाया है। कोर्ट ने आदिवासियों की सेहत से संबंधित योजनाओं को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए केंद्र और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग से जवाब मांगा है। यह याचिका एनजीओ महान ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. आशीष सातव और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर की गई थी।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र और आयोग को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह बाद मामले की सुनवाई करने का आदेश दिया। याचिकाकर्ता के वकील रानु पुरोहित ने कहा कि एनजीओ महाराष्ट्र के मेलाघाट क्षेत्र में आदिवासी समुदाय को मुफ्त चिकित्सा देखभाल और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहा है। उन्होंने कहा कि ट्रस्ट ने आदिवासी समुदाय के स्वास्थ्य मुद्दों पर बारीकी से अध्ययन किया और समाधान भी सुझाए हैं।
याचिका में घर आधारित बाल देखभाल, गंभीर कुपोषण का प्रबंधन, मृत्यु नियंत्रण कार्यक्रम और स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक-निजी भागीदारी जैसी योजनाओं को लागू करने की मांग की गई है। इस याचिका में यह भी दावा किया गया है कि महाराष्ट्र में इन उपायों को बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश पर लागू किया गया था, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इसके क्रियान्वयन में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
याचिकाकर्ताओं ने यह आरोप भी लगाया कि आदिवासी क्षेत्रों के लिए निर्धारित सरकारी धन का ठीक से उपयोग नहीं हुआ है और कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी के कारण लाभों का वितरण असमान और मनमाना रहा है, जो कि समानता और सम्मानजनक जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।