बिहार के दशरथ मांझी, जिन्हें माउंटेन मैन के नाम से जाना जाता है, की प्रेम कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। यह कहानी है एक ऐसे प्रेमी की, जिसने अपनी पत्नी के लिए न केवल जीवन जीने की प्रेरणा पाई, बल्कि 22 वर्षों तक एक पहाड़ को काटते हुए अपने प्यार को याद किया।
दशरथ मांझी का जन्म गहलौर गांव, गया जिले में हुआ था। वह एक साधारण मजदूर थे, लेकिन उनका प्रेम और समर्पण असाधारण था। उनकी पत्नी फाल्गुनी देवी रोज पहाड़ पार कर अपने पति को खाना और पानी पहुँचाने जाती थीं। एक दिन, जब वह पहाड़ पर जाते वक्त गिर गईं और चोटिल हो गईं, तो रास्ते के अभाव में उनका इलाज नहीं हो सका और वह चल बसीं। इस घटना ने दशरथ मांझी के दिल को तोड़ दिया और उन्होंने संकल्प लिया कि वह उस पहाड़ को काटकर रास्ता बना देंगे, जिससे उनकी पत्नी की जान गई थी।
यह प्रेम कहानी सिर्फ एक व्यक्तिगत दुख और संघर्ष का प्रतीक नहीं है, बल्कि एक अथक संघर्ष और अडिग संकल्प की कहानी है। दशरथ मांझी ने ठान लिया था कि वह 22 साल तक बिना थके, बिना रुके, हथौड़ी और छेनी से पहाड़ को काटते रहे। उनका यह संघर्ष सिर्फ उनके खुद के लिए नहीं था, बल्कि गहलौर गांव के लोगों के लिए भी था, क्योंकि वह पहाड़ काटकर 55 किलोमीटर लंबा रास्ता 15 किलोमीटर कर दिया था।
दशरथ मांझी की इस मेहनत और प्रेम को केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया ने सराहा। उनका नाम माउंटेन मैन के रूप में प्रसिद्ध हुआ, और उनकी कहानी को बॉलीवुड ने भी अपनी फिल्म ‘मांझी: द माउंटेन मैन’ के रूप में दर्शाया। इस फिल्म में उनके संघर्ष और प्रेम को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया गया।
बिहार सरकार ने भी उनके योगदान को पहचानते हुए उन्हें सम्मानित किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें सीएम की कुर्सी पर बिठाकर सम्मानित किया और उनके योगदान को याद करते हुए उनके द्वारा काटे गए रास्ते को सड़क में बदलने का काम किया। 2016 में केन्द्र सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय सम्मान देने के रूप में डाक टिकट जारी किया।
उनकी प्रेम कहानी आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है। खासकर वेलेंटाइन डे पर, जब प्रेमी जोड़े गहलौर घाटी का दौरा करते हैं, तो यह प्रेम कहानी उन्हें प्रेरित करती है। दशरथ मांझी की प्रेम कथा एक अद्भुत प्रेम, संघर्ष और समर्पण की मिसाल बन चुकी है, जो यह साबित करती है कि सच्चा प्यार किसी भी चुनौती से बड़ा होता है।