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सुप्रीम कोर्ट ने मुफ्त योजनाओं पर उठाया सवाल, शहरी बेघरों के लिए आश्रय पर सुनवाई जारी

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Supreme Court raises questions on free schemes

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को शहरी बेघरों के लिए आश्रय की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान, जस्टिस बीआर गवई ने राजनीतिक दलों की मुफ्त योजनाओं और रेवड़ी संस्कृति पर इशारों-इशारों में कड़ी टिप्पणी की। जस्टिस गवई ने कहा कि बेहतर होगा कि लोगों को परजीवी बनाने के बजाय उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए। इस टिप्पणी ने देशभर में रेवड़ी संस्कृति और मुफ्त योजनाओं को लेकर बहस छेड़ दी है।

सुप्रीम कोर्ट में ईआर कुमार बनाम केंद्र सरकार, 2003 के मामले की सुनवाई चल रही है, जिसमें शहरी बेघरों के लिए आश्रय सुनिश्चित करने का मुद्दा है। अक्टूबर 2022 में कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शहरी बेघरों के लिए आश्रय की स्थिति पर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था। इसके बाद, दिसंबर 2023 में कोर्ट ने यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और बिहार से शहरी बेघरों के लिए अस्थायी आश्रय की स्थिति की जानकारी मांगी थी।

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12 फरवरी को वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट को बताया था कि दिल्ली में शेल्टर होम्स में सिर्फ 17,000 लोगों के लिए जगह है, जबकि यह क्षमता 2 लाख से ज्यादा होनी चाहिए। उन्होंने इस मामले में दो प्रमुख समस्याएं उठाई थीं: (i) आश्रयों की कमी और (ii) आश्रयों की स्थिति से जुड़ी समस्या।

इस मामले में जब सरकार की ओर से एक एफिडेविट दाखिल किया गया जिसमें शेल्टर होम्स में बेघरों को दी जाने वाली सुविधाओं का उल्लेख था, तो जस्टिस गवई ने इस मुद्दे को मुफ्त योजनाओं की राजनीति से जोड़ते हुए कई टिप्पणियां कीं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में मुफ्त योजनाओं के कारण अब कृषकों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं क्योंकि सभी को घर बैठे मुफ्त चीजें मिल रही हैं। जस्टिस गवई ने मध्य प्रदेश की लाड़ली बहन योजना का उल्लेख करते हुए कहा कि इस योजना के तहत महिलाओं को 1250 रुपये की आर्थिक सहायता मिलती है, जबकि महाराष्ट्र में महिलाओं को लाड़की बहिन योजना के तहत 1,500 रुपये प्रति माह मिलते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान मुफ्त राशन योजना का भी जिक्र किया, जो कोरोनावायरस महामारी के समय से देशभर में जरूरतमंदों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान कर रही है। इस योजना को दिसंबर 2023 तक जारी रखा गया और बाद में इसे पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया।

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ORF) के अध्ययन के अनुसार, डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) योजना के तहत 2013 से 2022 तक ₹16.8 लाख करोड़ की राशि ट्रांसफर की गई, जो महिलाओं के लिए निर्णय लेने में सहायक रही है। प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) ने भी महिलाओं के बैंक खातों के जरिए डीबीटी की सुविधा को सरल बनाया, जिससे कोविड-19 के दौरान तीन महीने तक महिलाओं को 500 रुपये हस्तांतरित किए गए।

इस सुनवाई और टिप्पणियों ने यह सवाल उठाया है कि क्या मुफ्त योजनाओं की राजनीति वास्तव में समाज के लिए फायदेमंद है, या यह केवल एक अल्पकालिक चुनावी रणनीति है, जो समाज को परजीवी बना देती है।

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