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नई दिल्ली विधानसभा, इस बार केजरीवाल के लिए क्यों कड़ा हो सकता है मुकाबला?

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New Delhi Assembly, why can the competition be tough for Kejriwal this time

नई दिल्ली विधानसभा सीट, जो दिल्ली की सबसे चर्चित और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण सीटों में गिनी जाती है, इस बार चुनावी मैदान में चर्चा का केंद्र बनी हुई है. आम आदमी पार्टी (AAP) के संयोजक और तीन बार के विधायक अरविंद केजरीवाल यहां से एक बार फिर अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं. लेकिन इस बार मुकाबला उनके लिए उतना आसान नहीं दिख रहा.

चुनावी इतिहास और वर्तमान स्थिति

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1993 से लेकर अब तक, नई दिल्ली सीट पर जीतने वाले उम्मीदवार की पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाई है। 2013 में अरविंद केजरीवाल ने इस सीट से कांग्रेस की शीला दीक्षित को हराकर अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी। इसके बाद 2015 और 2020 में भी वे यहां से भारी मतों से विजयी रहे. पिछले चुनाव में उन्होंने 61.10% मत प्राप्त किए थे.
हालांकि, इस बार समीकरण बदलते दिख रहे हैं. बीजेपी ने साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को उम्मीदवार बनाकर मुकाबले को रोचक बना दिया है. वहीं, कांग्रेस के संदीप दीक्षित अपनी पारिवारिक विरासत के सहारे मैदान में हैं.

मतदाताओं का जातीय समीकरण

बता दें कि नई दिल्ली सीट पर 1,90,000 मतदाता हैं, जिनमें से वाल्मिकी और धोबी समुदाय निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं. अनुमान के मुताबिक़, यहां वाल्मिकी मतदाता लगभग 20,000 और धोबी समुदाय के मतदाता 15,000 के आसपास हैं. अरविंद केजरीवाल ने हाल ही में धोबी कल्याण बोर्ड के गठन की घोषणा की है, जिससे धोबी समुदाय में उनकी स्वीकार्यता बढ़ी है.
हालांकि, वाल्मिकी मतदाताओं में बीजेपी के प्रति झुकाव दिख रहा है. मंदिर मार्ग स्थित वाल्मिकी मंदिर के आसपास बातचीत करने पर मतदाताओं ने इस बात के संकेत दिए कि इस बार बीजेपी के प्रवेश वर्मा मजबूत स्थिति में हैं.

अरविंद केजरीवाल के लिए चुनौतियां

AAP के 12 वर्षों के शासन के बाद, दिल्ली में पार्टी को सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है. कथित भ्रष्टाचार के आरोपों और अरविंद केजरीवाल की हालिया जेल यात्रा ने उनके राजनीतिक करियर पर असर डाला है. विपक्षी पार्टियां इन मुद्दों को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. इस बीच, बीजेपी ने मतदाताओं को रिझाने के लिए योजनाओं और एनजीओ के ज़रिए मदद पहुंचाने की रणनीति अपनाई है. प्रवेश वर्मा के कैंपेन में लगाए गए हेल्थ कैंप और महिलाओं को आर्थिक मदद जैसे प्रयासों का प्रभाव मतदाताओं पर दिख रहा है.

क्या कह रहे हैं विश्लेषक?

चुनाव विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार मुकाबला बेहद कड़ा है. जानकारों का मानना है कि, “केजरीवाल के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा की लड़ाई है. अगर वे यह सीट हार जाते हैं, तो उनकी राजनीति पर बड़ा असर पड़ेगा. दूसरी ओर, प्रवेश वर्मा ने वाल्मिकी मतदाताओं को साधने की रणनीति अपनाई है, जो बीजेपी के पक्ष में झुकाव दिखा रहे हैं.”

नतीजा किसके पक्ष में?

इस सीट पर जीत का फैसला वाल्मिकी और धोबी समुदाय के मतदाताओं के रुख पर निर्भर करेगा. हालांकि, अरविंद केजरीवाल ने मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए हर संभव प्रयास किए हैं. अब देखना यह है कि क्या वे चौथी बार इस सीट पर अपनी पकड़ बनाए रखने में सफल होंगे या फिर बीजेपी और कांग्रेस उनके लिए नई चुनौती बनेंगी.

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