उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि आपराधिक अपीलों की बढ़ती संख्या से निपटने के लिए उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों (अस्थायी न्यायाधीशों) की नियुक्ति एक प्रभावी कदम हो सकता है। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की विशेष पीठ ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित आपराधिक मामलों के आंकड़ों का हवाला देते हुए इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित किया।
पीठ ने विशेष रूप से इलाहाबाद उच्च न्यायालय का उल्लेख करते हुए कहा कि अकेले इस अदालत में 63,000 आपराधिक अपीलें लंबित हैं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यह स्थिति न्यायालयों की क्षमता पर भारी दबाव डाल रही है और न्याय वितरण प्रणाली को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए तुरंत प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
शीर्ष अदालत ने यह भी संकेत दिया कि वह अप्रैल 2021 में पारित एक महत्वपूर्ण निर्णय की शर्तों में बदलाव करने पर विचार कर सकती है। उस फैसले में कहा गया था कि उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति तभी की जा सकती है, जब वहां रिक्तियां स्वीकृत पदों की कुल संख्या का 20 प्रतिशत या उससे अधिक हों।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह सीमा लचीली होनी चाहिए ताकि लंबित मामलों की संख्या को कम किया जा सके। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि आपराधिक मामलों की अधिकता केवल कानूनी प्रक्रिया में देरी का कारण नहीं बनती, बल्कि यह न्याय तक त्वरित पहुंच के मूलभूत अधिकार को भी बाधित करती है।
उच्चतम न्यायालय ने सभी संबंधित पक्षों से इस मुद्दे पर सुझाव देने का अनुरोध किया है ताकि समाधान के लिए एक व्यापक योजना तैयार की जा सके। तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति से न केवल लंबित आपराधिक अपीलों को निपटाने में तेजी आएगी, बल्कि यह न्यायालयों के कामकाज को भी संतुलित बनाए रखने में मददगार होगी।
यह पहल न्याय प्रणाली में व्याप्त देरी की समस्या को कम करने और आम जनता के न्याय तक पहुंच को सुलभ और समयबद्ध बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है।